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रोमांस और फिलोसोफी में लगभग एकरूपता है। वो इसलिए है क्योंकि रोमांस और फिलोसोफी संवेदनाओ से प्रेरित होती है आवेग और स्पंदन को महसूस करके उससे अव्यक्त आनंद को अनुभव किया जाता है। संवेदना का स्तर वहां पहुँच जाता है जहाँ एक अलग प्रकार की दुनिया निर्मित हो जाती है।
कोई भी बात सीधे-सीधे अभिव्यक्त नहीं होती मतलव किसी निष्कर्ष पर सीधे तोर पर नहीं पहुंचा जाता यदि गति को इससे जोड़ दिया जाए तो इसकी गति बहुत मंद होती है।
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