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न्यूरोन एडिटिंग ऐंसा हो पाना क्लीनिकली सम्भव नही हुआ है ? जबकि ब्रेन पूरी तरह न्यूरल ओसिलेसन से ड्राइव होता है हालाकि आज तक के सभी प्रकार के प्रयोगों से यह सिद्ध हुआ है की बॉडी की किसी भी तरह की एक्टिविटी से ब्रेन में लाइट एमिसन होती है या ब्रेन चार्ज हो जाता है और वह इलेक्ट्रिक चार्ज 25 wt लगभग का होता है तब यदि उस इलेक्ट्रिक चार्ज को डिस्ट्रिब्युट किया जा सके या उसे प्रोवोक किया जा सके तो शायद उससे कुछ अलग या नया मिल सकता है ।
(i)न्यूरोन एडिटिंग आज भले ही सम्भव नही है परन्तु आने बाले भविष्य में ऐंसा होना सम्भव होगा ।
(ii) यदि न्यूरोन एडिटिंग सम्भव हुई तो उससे किसी भी प्रकार की बीमारी का इलाज सम्भव हो सकता है ।
(iii) जबकि बुद्ध ,स्वामी विवेका नन्द ,महावीर स्वामी आदि ने वह प्रोसेस जो कैसी भी थी ,
पर वह थी न्यूरोन एडिटिंग जिसके परिणाम स्वारूप उनका आत्म परिवर्तन हुआ जबकि आत्म परिवर्तन का अभिप्राय यह हुआ की उनकी पूरी सोच का इनवर्सन होना तथा इसलिए सोच का जनरेसन पॉइंट है “”सेन्स “” जबकि सेन्स का ड्राइविंग पॉइंट है ब्रेन या “”न्यूरोन “” तब यदि यही प्रयोग क्लीनिकली किया जाए तो किसी विशेष तकनीक से ब्रेन में स्टिम्युलेसन करना पड़ेंगे और उस स्टिम्युलेसन से उस प्रकार का केमिकल सिक्रेसन होगा जो किसी का आत्म परिवर्तन करते हैं या उसके सहायक होते हैं ।
(iv) न्यूरोन एडिटिंग से बॉडी की कंट्रोलिंग बदल सकती है ।
(v) हिन्दू माइथोलॉजी में बहुत जोर देकर या आध्यात्मिक रूप से बताया गया है की समाधी की किसी स्पेसिफिक फेज में ब्रेन ट्रांसेंडेंटल स्टेट में पहुच जाता है तब वह संसार से परे यूनिवर्स को भी विजिट करने लगता है इसका आसय यह हुआ की ब्रेन वेव उस फ्रिकवेंसी की हो जाती है जो स्पेस को भी पेनिट्रेट कर सके और उससे इंटयूसन या कगनिसन प्राप्त कर सके ।
(vi) हालाकि अध्यात्म सामान्यतः फिजिकल और मेन्टल रहता है परंतु उसी की सिस्टर ब्रांच विज्ञान है जो अध्यात्म को डिवाइस में कन्वर्ट करना चाहती है तथा कभी कभी करने में सफल हो जाती है ।
(vii) अनेकों बार श्री कृष्ण ने अपनी आंतरिक ऊर्जा का उल्लेख किया है यदि साइंटिफिकली समझा जाए तो बॉडी की “”इनमोस्ट एनर्जी”” का सेंट्रल पॉइंट न्यूरोन के अलावा कुछ भी नही हो सकता है इसलिए उसमे एडिटिंग करना सम्भव हो सकता है ।

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