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आत्मा तर्कों पर आधारित नही हो सकती है ? तथा आत्मा इन्द्रिय अनुभूतियों पर भी आधारित नही हो सकती है ? क्योंकि सामान्य मनुष्य की अनुभूति और अनुभव तर्क जनित और इन्द्रिय जनित होते हैं ।
जबकि सामान्यतः इंसान के ज्ञान की परिसीमा तर्कों पर आधारित है जो तर्क के माध्यम से सत्य है वही व्यापक सत्य है तथा वही अंतिम सत्य है,ऐंसा मानलिया जाता है एवं इस विषय पर परिचर्चा न करना पड़े इसलिए तथाकथित बुद्धि जीवियों ने उसे धार्मिकता से जोड़ दिया तथा उस सत्य का सामना न करना पड़े इसलिए उसे आसंसारिक विषय बना दिया ।
(i) यदि किसी भी क्षण इंसान यह समझ ले की आत्मा अंतिम सत्य है और वह कभी नही मरती न ही कभी जन्म लेती तब उसके भीतर के संसय हमेशा हमेशा के लिए समाप्त हो जायेगे ।
(ii) सामान्यतः 360° कोण पर घूमने के बाद भी इस प्रश्न का उत्तर नही मिलता की सिर्फ शरीर नाशवान है क्योंकि बौद्धिक स्तर पर इस का उत्तर नही मिलता है तथा जब बौद्धिक स्तर पर सभी प्रयोग असफल हो जाते है तब मनोवैज्ञानिक ज्ञान मिलता है की इंसान श्री कृष्ण पर सामान्य विश्वाश करते है या सामान्य जन उनके कहे उपदेश को जीवन में आत्म सात नही कर पाते हैं जबकि इंसान के रूप में मैं ,आप और हम सभी सम्मलित हैं जो आत्मा के सर्वव्यापी अस्तित्व को नही समझ पाते हैं ।
(iii) तार्किक रूप से इंसान का अस्तित्व कहीँ न कहीँ आत्मा से संबद्ध हो ता है इसलिए इंसान अपने अस्तित्व को सिर्फ मरणउपरान्त भूल पाता है ।
(iv) हालाकि आत्मा किसी भी प्रकार से असंसारिक विषय नही हो सकता है ऐंसा लोगो द्ववारा प्रचारित किया गया है की आत्मा और ईश्वर की बात करने बाला संसारिक नही है और उसके संसारिकता के लक्षण समाप्त हो रहे हैं ।
(v) यदि जीवन का अंतिम संघर्ष उन्नति और विकास है तब दुखों के साथ जीवन यापन समझदारी कैसे हो सकती है ।
(vi) दुनिया में सबसे ज्यादा रहस्यमय यदि कुछ भी है तो वह खुद इंसान है और इंसान में भी सबसे ज्यादा रहस्यमय उसका दिमाग है जो जिज्ञासाएँ पैदा करता है तथा जितना जानो उतना कम ।
(vii) तर्क यह स्वीकार नही करता की इंसान अपने जन्म के पहले भी अनेको जन्म ले चुका होता है ।
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