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जहाँ विश्वाश में आंशिक कमी होती है वहां हमेशा सन्देह होता है ? क्योंकि इंसान अपनी आँखों और कानों पर सबसे ज्यादा विश्वाश करता है इसलिए इंसान का सबसे बड़ा विश्वाश उसकी आँखे और कान है इसलिए उसे सन्देह है ? की ईश्वर उसके साथ नही है ?
जबकि पूरे ब्रह्माण्ड (मटेरियल और इममटेरियल या लिविंग्स और नॉन लिविंग्स )में ऐंसा कुछ भी नही है जो किसी न किसी आकार(साइज) घन्त्व (डेन्सिटी) मात्रा (क्वान्टिटी ) और द्रव्यमान (वोल्युम) में ना हो तब यदि ईश्वर एक सच है तो उसका एक आकार होगा ?
तब यदि ईश्वर एक परिकल्पना है ?
तब भी उसका आकार होगा ।
क्योंकि जो इंसान की आँखों और कानों को दिखता और सुनाई नही देता है वह मेटर कभी कभी उपस्थित होता तथा वह किसी न किसी आकार या द्रव्यमान या घन्नत्व में जरूर होता है जबकि समान्यतः ह्यूमन ब्रेन वेव्स और रेज को इण्टरसेप्ट नही कर पाता परन्तु वे होती हैं और उनका प्रभाव नकारात्मक या सकारात्मक दोनों ही प्रकार का हो सकता है जबकि उनके स्टिम्युलेसन का एक प्रोपर सोर्स होता है तथा उस सोर्स का आकार,द्रव्यमान और घनतत्व होता है तथा वे सोर्स किसी रचना के साथ वर्तमान में होती हैं और उनका एक निश्चित जीवन काल होता है क्योंकि यूनिवर्स में किसी भी मेटर का एक निश्चित जीवन काल निर्धारित है उसके बाद वह डिकम्पोज होने लगता है और किसी समय बाद वह मेटर पूरी तरह समाप्त हो जाता है जबकि उस किसी मेटर (लिविंग और नोन लिविंग)के डिकम्पोज होने की प्रोसेस उसके जनरेट होने के साथ ही प्रारम्भ होने लगती है

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