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सामान्यतः ह्यूमन ब्रेन अच्छे और बुरे के बीच में नही सोच पाता है इसलिए लगातार ” न” हमेशा अच्छा सोचता है और “न ” हमेशा बुरा सोचता है ,
हालाकि अपवाद स्वरुप बुद्ध टाइप का ब्रेन अच्छे और बुरे के बीच में सोचने में सक्षम हो जाता है अभिप्रायः न अच्छा और न बुरा क्योंकि जिस लेवल पर ह्यूमन ब्रेन अच्छा सोचेगा ,ठीक उसी लेवल पर बुरा सोचेगा ,
हालाकि सोच किसी समय बाद , कल्पनाओं का रूप लेने लगती है जबकि ” ह्यूमन वर्ल्ड करोडो ब्रेन” का आउटकम है या निष्कर्ष है और यह किसी एक ब्रेन की व्यवस्था का स्वरुप नही है और इसका मूल कारण है डाइवर्सिटी जिसमे ज्योग्रा्फीकल डिस्टेंस और ज्योग्राफीकल क्लाइमेट होता है ।

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