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आप जहां हैं वहां अपने आप को रोक सकते हैं ?
क्योंकि उस अवस्था से उन्नत कुछ भी नही है
जबकि आप अपनी उम्र के अनुरूप बढ़ती भावनाओं को नही रोक पाते हैं क्योंकि भावनाएं उम्र के परस्पर प्रतियोगिता करती है उम्र जिस स्तर की छूती है वही उसी स्तर से भावनाएं पैदा होती एवम् मृत होती जाती है हलाकि तप और ध्यान उम्र को बढ़ने से नही रोकती परंतु भावनाओं को नियंत्रित करने लगती है ।

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